रविवार, 15 फ़रवरी 2015

थोड़ा ठहर कर












धुंधलापन तुम्हे वापस नही लौटाता
बशर्ते तुम्हे कोई जल्दी ना हो.

वहा से अँधेरा चला जाए
तो केवल प्रकाश बचता है
और प्रकाश चला जाए
तो भय

कमज़ोर है ये कहना कि
मै नही चाहता जाना
किसी का भी.
आने-जाने
जीतने-हारने
के शोर के बीच
ठहराव मेरे समय में एक महत्वाकांक्षा है.

थोड़ा ठहर कर
धुंध को भी निहारना चाहिए
क्या पता वही असल तस्वीर हो
और सफाई सिर्फ एक करामात
सुनो केवल इतना
कविता में नही
प्रार्थना में.

इसे मेरा अंतिम निष्कर्ष ना समझा जाए
अंतिम सुझाव भी नही
मै तो अंतिम रूप से प्रश्नचिह्न तक भी नही पहुँच पाता
उससे पहले की हूक पर ठिठक जाता हूँ.

हर बार. 

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