मंगलवार, 28 मई 2013

खण्डहर- भाग २




हर गुज़रती रात के साथ
और स्याह होती
इकट्ठी नींदों की रोशनाई में
अतीत की कलम डुबोकर
ज़िन्दगी की स्लेट पर
उसने
लिखनी चाही इक कविता.

लेकिन स्याही में घुली
टीसों की कसक
कलम में अटकी एक पुकार
और
स्लेट के सतही मौन
के द्वंद से
जो उभरा अन्ततः
वो था एक दु :स्वप्न सरीखा.

स्वप्न देखने की आदि 
उन आँखों का धैर्य 
बह निकला पूरे वेग से 

इक बूँद समंदर की सुनामी
बहा ले गयी बहुत कुछ
अपने प्रवाह में
और
जो बचा
वो था
वर्तमान का
एक यतीम खण्डहर.

इक भग्नावशेष -
-अनाथ-
जिसका कोई इतिहास न था
और
इतना स्याह
जिस पर
किसी भविष्य, ईश्वर, प्रेम
या
कविता
के हस्ताक्षर की गुंजाईश न थी.

'मै जिधर खड़ा हु, उधर रात का मुहाना है.'


शनिवार, 25 मई 2013

खण्डहर- भाग १

इतिहास ना तो विजेताओं के झूठ का पुलिंदा है ना पराजितो के भ्रमो का आख्यान. इतिहास उन जीते चले जा रहे लोगो का संस्मरण है, जिनमे से अधिकतर न तो विजेता है न ही पराजित |
                     
                                                             __________जूलियन बार्नेस, द सेंस ऑफ़ एन एंडिंग

                                                                                             @हौज़ ख़ास, नईं दिल्ली 

खण्डहर, स्मारक या भग्नावशेष गहरे - ह्रदय में कहीं - अचेतन या अर्धचेतन के स्तर पर, हमारे इक हिस्से का साकार रूप होते हैं. तभी तो उनसे एक नैसर्गिक जुड़ाव सा प्रतीत होता है - कुछ जान-पहचान जैसी, कुछ अपनेपन जैसा.

गहरे में- एक कोने में - हम सब एक खण्डहर (या ज्यादा) अपने साथ ढोते है- अपने इतिहास, अतीत, अपनी गरिमा, अपनी टीस, अपनी यादोँ, अपने दुख, अपने पछतावो, अपने एकांत से बना.

खण्डहर मृत होते हैं. पेड़ो के तने जैसे.

 ( वर्तमान की संरचनाओ पर जब भविष्य की रोशनी पड़ती है तो भूत में छाया की प्रतीति उभरती हैं. छाया की तरह खण्डहर के निर्माण के लिए भी अँधेरे और रोशनी के एक ख़ास तरह के अनुपात और समागम की आवश्यकता होती है. आत्मा के अँधेरे से स्याह कोई अन्धेरा संभव नही. भविष्य और आशाओं की रोशनी की चमक का जोड़ सृष्टि में मिलना दुर्लभ है. इस असंभव और दुर्लभ के बीच खण्डहर अपनी जगह खोज लेते है, सहेज लेते हैं).

खण्डहर नितांत निजी होते हैं. निजता से बाहर वो केवल मन बहलाव का, पर्यटन का, कौतुक का, बतकही का, स्थल बन सकते है. बस.
हर भग्नावशेष एक समय सभ्यता की, घर की, संभावना का साकार था. हर खण्डहर वर्तमान में जीवन पर मृत्यु के हस्ताक्षर का प्रतिनिधि हैं.

खण्डहर/भग्नावशेष शहर के बीचोबीच होकर भी शहर का, वर्तमान का, जीवन का, आपाधापी का, हिस्सा नहीं होता- हो ही नहीं पाता, हो ही नहीं सकता. अपनी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में भी खण्डहर की दीवारे इतनी सशक्त होती हैं कि शहर के प्रवेश को रोक सके.
हाँ सच में. तुमने सुना तो था शहर को बाहर छूटते.

जीवन में मृत्यु की गहन इच्छा निहित हैं. इतिहास उसी नश्वरता का बयान है और मृत्यु की अमरता का आख्यान भी. संतुलन इतिहास के सारतत्वो में से एक हैं.

इतिहास -निरंतरता और स्थायित्व के दो ध्रुवो, चेतना और जड़ता के  के बीच, सधा हुआ मध्य बिंदु है. मानो त्रिकोण के तीसरे कोण वाला मध्य, बुद्ध के मध्यम मार्ग वाला मध्य. भूत की जड़ता और भविष्य की संभावना के बीच की निरंतरता.

खण्डहर इतिहास के इसी संतुलन में कही अपनी उपयोगिता - अपना स्थान - अपना होना खोज लेते हैं. इतिहास खंडहरों को सहेजने - उनकी कहानी फिर से कहने, उनका दुःख समझने, उनकी टीस और दर्द सुनने की कला का उपक्रम है. इतिहास का भग्नावशेषो में जाने का उपक्रम गहन अर्थो में मानवीय है. और कैथार्टिक भी.

मुझे इतिहास से और उसकी इसी मानवीयता से प्रेम है.



खण्डहर इतिहास की पूँजी हैं. हम सबके खण्डहर.