गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

अनिद्रा उवाच

जानते हो अगर दिन अधूरा रह जाए तो नींद नहीं आती. या आती भी है तो इतनी सतही कि उठकर ऐसा लगे मानो एक छोटे अंतराल का बुरा सा स्वप्न देखा हो----
( क्या दिन अधूरा रह जाने पर ही ऐसा होता है ?/ और ये भी तो बताओ  की दिन पूरा हो जाने का पैमाना क्या होता है? )
 ----- क्योकि दिन की ताकते-जो सदा से जीवन की ताकतों के साथ रही हैं- रात के अँधेरे का अतिक्रमण कर जाती है..
.. रात की शान्ति, उसके भोलेपन और सबको अपना लेने की कोशिश या आदत ने उसे कई तत्वों के संघर्ष का मैदान बना दिया है.
जहा चाँद, तारे, और नक्षत्र दिन के हस्तक्षेप का प्रतिनिधित्व करते है और सूरज की उजली छवि के बल पर चमकते रहते है, वही शहर का अवसाद, चुप्पी और सन्नाटा भी रात की नैसर्गिक शान्ति और एकांत की आड़ में  वातावरण पर काबिज हो जाते है.

शहरों में नींद और रात को खोजना मुश्किल और उनका मेल कराना और भी दुष्कर होता जा रहा है.

सोने की सजग कोशिशे बदस्तूर जारी है.

शहर फ़ैल रहा है. सजग रहना.
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आज रात नींद नहीं आएगी वो जानता था. गहरी नींद सोये हुए ज़माना सा बीता लगता है. एक शोर है जो सोने नहीं देता या शायद स्वयं के निर्मित एकाकीपन से उपजा इतना सन्नाटा और सुनसान आसपास पसर गया है कि उसे सोने की जगह नहीं मिलती.

(किसी रोज़, आकर सब जगह पर लगा दो. सोने की थोड़ी सी जगह बना दो.)

"जगह खाली है, एक ईश्वर चाहिए !"







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